आयुर्वेद के प्रति लोगों की चेतना और रुचि में हुई वृद्धि- उपाध्याय
आयुर्वेद के प्रति लोगों की चेतना और रुचि में हुई वृद्धि- उपाध्याय
छत्तीसगढ़ संवाददाता
मनेन्द्रगढ़, 7 अगस्त। आयुर्वेद के प्रति लोगों की जागृति पहले के मुकाबले में वृद्धि हुई है एवं जड़ी-बूटियों के प्रति भी विश्वास बढ़ा है। इसके सरल उपयोग से लोगों की रुचि में निरंतर इजाफा हो रहा है। उक्त बातें जड़ी-बूटी दिवस के अवसर पर पतंजलि योग समिति के वरिष्ठ योग प्रशिक्षक एवं जिला प्रभारी सतीश उपाध्याय ने कही।
आयुर्वेदिक दवाओं की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा- भारत में आयुर्वेदिक चिकित्सा का जन मानस पर गहरा प्रभाव है। अंग्रेज शासन काल में भी लोगों ने इसमें अपना विश्वास नहीं खोया था। भारत के सुदूर ग्रामीण अंचलों में लोग आज भी जड़ी बूटियों पर आश्रित हैं। जड़ी बूटियों से किसी भी प्रकार का कोई हानि नहीं होता है। इसके अतिरिक्त जड़ी-बूटी चिकित्सा में बहुत कम पैसे खर्च होते हैं। दुनिया के कोने-कोने तक इसकी उपयोगिता की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। भारत में औषधीय पौधों की जानकारी वैदिक काल से ही परंपरागत रूप से चली आ रही है।
उन्होंने पतंजलि योग समिति के द्वारा चलाए जा रहे अभियान के संबंध में कहा कि हमारा एकमात्र उद्देश्य रोग को नष्ट करना है जिससे लोग सरलता एवं सहजता से स्वास्थ्य सेवाएं पा सकें। इसके प्रयास में पतंजलि योग समिति के माध्यम से सभी योग साधक निरंतर लगे हुए हैं।
योग प्रशिक्षक उपाध्याय ने पाश्चात्य प्रभाव संस्कृति एवं आयुर्वेद के प्रति उदासीनता की चर्चा करते हुए कहा कि आज भी जितना विश्वास लोगों में अंग्रेजी दवाई को लेकर है उतना परंपरागत जड़ी बूटियों की चिकित्सा पद्धति पर नहीं है। भारत की आज सबसे सहज सस्ती और जनकल्याणकारी पद्धति आयुर्वेदिक पद्धति है जिसके अंतर्गत आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के द्वारा चिकित्सा की जाती है।
उन्होंने एलोवेरा, गिलोय, अजवाइन, अलसी, अनार, शिवनाक, अर्जुन की छाल, बबूल, हर बहेड़ा, बकायन, ब्राह्मी, चमेली, दूधी, इसबगोल आदि जड़ी बूटियों के संबंध में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि इसके रोपण एवं संरक्षण के लिए लोगों को आगे आना चाहिए।
छत्तीसगढ़ संवाददाता
मनेन्द्रगढ़, 7 अगस्त। आयुर्वेद के प्रति लोगों की जागृति पहले के मुकाबले में वृद्धि हुई है एवं जड़ी-बूटियों के प्रति भी विश्वास बढ़ा है। इसके सरल उपयोग से लोगों की रुचि में निरंतर इजाफा हो रहा है। उक्त बातें जड़ी-बूटी दिवस के अवसर पर पतंजलि योग समिति के वरिष्ठ योग प्रशिक्षक एवं जिला प्रभारी सतीश उपाध्याय ने कही।
आयुर्वेदिक दवाओं की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा- भारत में आयुर्वेदिक चिकित्सा का जन मानस पर गहरा प्रभाव है। अंग्रेज शासन काल में भी लोगों ने इसमें अपना विश्वास नहीं खोया था। भारत के सुदूर ग्रामीण अंचलों में लोग आज भी जड़ी बूटियों पर आश्रित हैं। जड़ी बूटियों से किसी भी प्रकार का कोई हानि नहीं होता है। इसके अतिरिक्त जड़ी-बूटी चिकित्सा में बहुत कम पैसे खर्च होते हैं। दुनिया के कोने-कोने तक इसकी उपयोगिता की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। भारत में औषधीय पौधों की जानकारी वैदिक काल से ही परंपरागत रूप से चली आ रही है।
उन्होंने पतंजलि योग समिति के द्वारा चलाए जा रहे अभियान के संबंध में कहा कि हमारा एकमात्र उद्देश्य रोग को नष्ट करना है जिससे लोग सरलता एवं सहजता से स्वास्थ्य सेवाएं पा सकें। इसके प्रयास में पतंजलि योग समिति के माध्यम से सभी योग साधक निरंतर लगे हुए हैं।
योग प्रशिक्षक उपाध्याय ने पाश्चात्य प्रभाव संस्कृति एवं आयुर्वेद के प्रति उदासीनता की चर्चा करते हुए कहा कि आज भी जितना विश्वास लोगों में अंग्रेजी दवाई को लेकर है उतना परंपरागत जड़ी बूटियों की चिकित्सा पद्धति पर नहीं है। भारत की आज सबसे सहज सस्ती और जनकल्याणकारी पद्धति आयुर्वेदिक पद्धति है जिसके अंतर्गत आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के द्वारा चिकित्सा की जाती है।
उन्होंने एलोवेरा, गिलोय, अजवाइन, अलसी, अनार, शिवनाक, अर्जुन की छाल, बबूल, हर बहेड़ा, बकायन, ब्राह्मी, चमेली, दूधी, इसबगोल आदि जड़ी बूटियों के संबंध में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि इसके रोपण एवं संरक्षण के लिए लोगों को आगे आना चाहिए।