बाबा बैद्यनाथ को तिलक चढ़ाकर बारात का आमंत्रण देने उनकी “ससुराल” से देवघर पहुंचे डेढ़ लाख श्रद्धालु

देवघर, 2 फरवरी । 3 फरवरी को वसंत पंचमी पर जब पूरे देश में हर जगह देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना होगी, तब झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथ का तिलक-अभिषेक करने के बाद लाखों लोग अबीर-गुलाल की मस्ती में सराबोर हो जाएंगे। देवघर में वसंत पंचमी के दो-तीन पहले से आस्था का जैसा सैलाब उमड़ता है, वह अपने आप में बेहद अनूठा है। इस बार यहां दो लाख से भी ज्यादा श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। इसे लेकर प्रशासन ने भी अपने स्तर पर व्यापक तैयारियां की हैं। वसंत पंचमी पर यहां सबसे ज्यादा श्रद्धालु बिहार-नेपाल के मिथिलांचल से पहुंचते हैं। वस्तुतः आस्था के इस सैलाब के पीछे वह लोकमान्यता है, जिसके अनुसार देवी पार्वती को पर्वतराज हिमालय की पुत्री और भगवान शंकर को मिथिला का दामाद माना जाता है। मिथिलांचल हिमालय की तराई में स्थित नेपाल से लेकर बिहार तक फैला है। शिवरात्रि पर शिव विवाह के उत्सव के पहले इन इलाकों के लाखों लोग वसंत पंचमी के दिन देवघर स्थित भगवान शंकर के अति प्राचीन ज्योर्तिलिंग पर जलार्पण करने और उनके तिलक का उत्सव मनाने पहुंचते हैं। इस बार भी भगवान की ससुराल वाले इलाकों से एक लाख से भी ज्यादा श्रद्धालु सोमवार तक देवघर पहुंच चुके हैं। वसंत पंचमी यानी सोमवार तक यह संख्या दो लाख के ऊपर पहुंचने का अनुमान है। इन श्रद्धालुओं में मिथिलांचल के तिरहुत, दरभंगा, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, अररिया, मधुबनी, सहरसा, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, मधेपुरा, मुंगेर, कोसी, नेपाल के तराई क्षेत्रों के लोग हैं। चूंकि ये लोग खुद को भगवान शंकर की ससुराल का निवासी मानते हैं, इसलिए देवघर पहुंचकर किसी होटल या विश्रामगृह के बजाय खुले मैदान या सड़कों के किनारे ही रुकते हैं। ऐसा इसलिए कि मिथिलांचल में यह धारणा प्रचलित है कि दामाद के घर पर प्रवास नहीं करना चाहिए। ज्यादातर लोग बिहार के सुल्तानगंज स्थित गंगा से कांवर में जल उठाकर 108 किलोमीटर की लंबी यात्रा पैदल तय करते हुए यहां पहुंचे हैं। लोग वैवाहिक गीत नचारी गाकर भोलेनाथ को रिझा रहे हैं। सोमवार को जलार्पण के साथ वे बाबा को अपने खेत में उपजे धान की पहली बाली और घर में तैयार घी अर्पित करेंगे। इसके बाद यहां जमकर अबीर-गुलाल उड़ेगा। बिहार के मिथिलांचल में इसी दिन से होली की शुरुआत मानी जाती है। वसंत पंचमी के दिन श्रृंगार पूजा के पूर्व बाबा पर फुलेल लगाने के बाद लक्ष्मी नारायण मंदिर में महंत सरदार पंडा गुलाब नंद ओझा, मंदिर स्टेट पुजारी श्रीनाथ मिश्र बाबा के तिलक का अनुष्ठान संपन्न कराएंगे। इसके 25 दिन बाद महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह संपन्न कराया जाएगा। देवघर के उपायुक्त विशाल सागर ने वसंत पंचमी उत्सव की प्रशासनिक तैयारियों को लेकर शनिवार को बाबा मंदिर के आसपास के क्षेत्रों का निरीक्षण किया। उन्होंने अधिकारियों को सुरक्षा व्यवस्था, साफ-सफाई, शौचालय, पेयजल, विद्युत व्यवस्था, स्वास्थ्य शिविर को दुरुस्त रखने का निर्देश दिया ताकि श्रद्धालुओं को असुविधा न हो। --(आईएएनएस)

बाबा बैद्यनाथ को तिलक चढ़ाकर बारात का आमंत्रण देने उनकी “ससुराल” से देवघर पहुंचे डेढ़ लाख श्रद्धालु
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देवघर, 2 फरवरी । 3 फरवरी को वसंत पंचमी पर जब पूरे देश में हर जगह देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना होगी, तब झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथ का तिलक-अभिषेक करने के बाद लाखों लोग अबीर-गुलाल की मस्ती में सराबोर हो जाएंगे। देवघर में वसंत पंचमी के दो-तीन पहले से आस्था का जैसा सैलाब उमड़ता है, वह अपने आप में बेहद अनूठा है। इस बार यहां दो लाख से भी ज्यादा श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। इसे लेकर प्रशासन ने भी अपने स्तर पर व्यापक तैयारियां की हैं। वसंत पंचमी पर यहां सबसे ज्यादा श्रद्धालु बिहार-नेपाल के मिथिलांचल से पहुंचते हैं। वस्तुतः आस्था के इस सैलाब के पीछे वह लोकमान्यता है, जिसके अनुसार देवी पार्वती को पर्वतराज हिमालय की पुत्री और भगवान शंकर को मिथिला का दामाद माना जाता है। मिथिलांचल हिमालय की तराई में स्थित नेपाल से लेकर बिहार तक फैला है। शिवरात्रि पर शिव विवाह के उत्सव के पहले इन इलाकों के लाखों लोग वसंत पंचमी के दिन देवघर स्थित भगवान शंकर के अति प्राचीन ज्योर्तिलिंग पर जलार्पण करने और उनके तिलक का उत्सव मनाने पहुंचते हैं। इस बार भी भगवान की ससुराल वाले इलाकों से एक लाख से भी ज्यादा श्रद्धालु सोमवार तक देवघर पहुंच चुके हैं। वसंत पंचमी यानी सोमवार तक यह संख्या दो लाख के ऊपर पहुंचने का अनुमान है। इन श्रद्धालुओं में मिथिलांचल के तिरहुत, दरभंगा, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, अररिया, मधुबनी, सहरसा, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, मधेपुरा, मुंगेर, कोसी, नेपाल के तराई क्षेत्रों के लोग हैं। चूंकि ये लोग खुद को भगवान शंकर की ससुराल का निवासी मानते हैं, इसलिए देवघर पहुंचकर किसी होटल या विश्रामगृह के बजाय खुले मैदान या सड़कों के किनारे ही रुकते हैं। ऐसा इसलिए कि मिथिलांचल में यह धारणा प्रचलित है कि दामाद के घर पर प्रवास नहीं करना चाहिए। ज्यादातर लोग बिहार के सुल्तानगंज स्थित गंगा से कांवर में जल उठाकर 108 किलोमीटर की लंबी यात्रा पैदल तय करते हुए यहां पहुंचे हैं। लोग वैवाहिक गीत नचारी गाकर भोलेनाथ को रिझा रहे हैं। सोमवार को जलार्पण के साथ वे बाबा को अपने खेत में उपजे धान की पहली बाली और घर में तैयार घी अर्पित करेंगे। इसके बाद यहां जमकर अबीर-गुलाल उड़ेगा। बिहार के मिथिलांचल में इसी दिन से होली की शुरुआत मानी जाती है। वसंत पंचमी के दिन श्रृंगार पूजा के पूर्व बाबा पर फुलेल लगाने के बाद लक्ष्मी नारायण मंदिर में महंत सरदार पंडा गुलाब नंद ओझा, मंदिर स्टेट पुजारी श्रीनाथ मिश्र बाबा के तिलक का अनुष्ठान संपन्न कराएंगे। इसके 25 दिन बाद महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह संपन्न कराया जाएगा। देवघर के उपायुक्त विशाल सागर ने वसंत पंचमी उत्सव की प्रशासनिक तैयारियों को लेकर शनिवार को बाबा मंदिर के आसपास के क्षेत्रों का निरीक्षण किया। उन्होंने अधिकारियों को सुरक्षा व्यवस्था, साफ-सफाई, शौचालय, पेयजल, विद्युत व्यवस्था, स्वास्थ्य शिविर को दुरुस्त रखने का निर्देश दिया ताकि श्रद्धालुओं को असुविधा न हो। --(आईएएनएस)