मुरूम छोडक़र रास्ते में डाली पीली मिट्टी

दलदली रास्ते ने 1500 की आबादी को घर में दुबकने किया मजबूर प्रदीप मेश्राम राजनांदगांव, 30 जुलाई (छत्तीसगढ़ संवाददाता)। खैरागढ़ जिले के निर्माण के बाद बेहतर बुनियादी संरचना की उम्मीद पाले भीतरी इलाकों के ग्रामीणों को प्रशासन ने ना उम्मीद कर दिया है। जिले के आखिरी छोर के पंचायत लछना के कच्चे रास्ते ने आधा दर्जन गांव के बाशिंदों को घर में ही दुबकने के लिए मजबूर कर दिया है। लछना-कटेमा के कच्चे मार्ग में दलदल होने के कारण न सिर्फ ग्रामीणों की दैनिक गतिविधियां दबकर रह गई है, बल्कि स्कूली बच्चों के लिए भी मुसीबत का पहाड़ खड़ा हो गया है। मिली जानकारी के मुताबिक लछना पंचायत के लछना-कटेमा की आवाजाही के लिए एक कच्चा मार्ग बरसात मेंं दलदल में बदल गया है। इसके पीछे पंचायती राज व्यवस्था के अलावा प्रशासनिक तंत्र भी जिम्मेदार है। वजह यह है कि महाराष्ट्र सीमा पर बसे कटेमा पहुंच मार्ग कीचड़ में डूबा हुआ है। बताया जा रहा है कि मौजूदा पंचायत की सरपंच प्रतिमा वर्मा की लापरवाही का खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। बरसात से पूर्व मुरूम के बजाय पीली मिट्टी से रास्ते को दुरूस्त करने की एक नासमझी की गई। फलस्वरूप इस रास्ते में दोपहिया वाहन तो दूर पैदल गुजरना भी दूभर हो गया है। बताया जा रहा है कि लगभग आधा दर्जन गांव की आबादी इस रास्ते से आवाजाही करती है। दल्लीखोली, कटेमा, टोला, बोड़ला, महुआढ़ार व अन्य कुछ गांव के लिए यह प्रमुख रास्ता है। यह इलाका घनघोर जंगल से घिरा हुआ है। बरसात के दौरान विषैले कीट-मकोड़ों और सर्पदंश का खतरा भी रहता है। वहीं आपाताकालीन चिकित्सकीय परिस्थिति में ग्रामीण इस रास्ते से खैरागढ़ का रूख करते हैं। मार्ग की खस्ता हालत के चलते ग्रामीणों में सरपंच के अलावा प्रशासन और कांग्रेस-भाजपा के जनप्रतिनिधियों के प्रति रोष व्याप्त है। लछना पंचायत के पूर्व सरपंच गणेशराम पटेल के अलावा देवीप्रसाद, सुखराम, भागवत नेताम, कुंवर सिंह, श्यामलाल समेत अन्य गांव के ग्रामीणों ने मौजूदा स्थिति को लेकर कड़ी नाराजगी जाहिर की है। बताया जा रहा है कि ग्रामीण कच्चे मार्ग को लेकर कई बार डामरयुक्त सडक़ बनाने की मांग करते रहे हैं। इस रास्ते से न सिर्फ प्रशासन के बल्कि नक्सल क्षेत्र के बेस कैम्प में तैनात अफसर और जवान भी गुजरते हैं। कटेमा और महुआढ़ार में संचालित बेस कैम्प का मुआयना और व्यवस्था की जांच पड़ताल के लिए अक्सर इस रोड से आलाधिकारियों को गुजरना पड़ता है। ऐसे में इस मुख्य कच्चे मार्ग से ग्रामीणों के अलावा प्रशासनिक अधिकारी भी सामान्य आवाजाही के लिए तरस रहे हैं।

मुरूम छोडक़र रास्ते में डाली पीली मिट्टी
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दलदली रास्ते ने 1500 की आबादी को घर में दुबकने किया मजबूर प्रदीप मेश्राम राजनांदगांव, 30 जुलाई (छत्तीसगढ़ संवाददाता)। खैरागढ़ जिले के निर्माण के बाद बेहतर बुनियादी संरचना की उम्मीद पाले भीतरी इलाकों के ग्रामीणों को प्रशासन ने ना उम्मीद कर दिया है। जिले के आखिरी छोर के पंचायत लछना के कच्चे रास्ते ने आधा दर्जन गांव के बाशिंदों को घर में ही दुबकने के लिए मजबूर कर दिया है। लछना-कटेमा के कच्चे मार्ग में दलदल होने के कारण न सिर्फ ग्रामीणों की दैनिक गतिविधियां दबकर रह गई है, बल्कि स्कूली बच्चों के लिए भी मुसीबत का पहाड़ खड़ा हो गया है। मिली जानकारी के मुताबिक लछना पंचायत के लछना-कटेमा की आवाजाही के लिए एक कच्चा मार्ग बरसात मेंं दलदल में बदल गया है। इसके पीछे पंचायती राज व्यवस्था के अलावा प्रशासनिक तंत्र भी जिम्मेदार है। वजह यह है कि महाराष्ट्र सीमा पर बसे कटेमा पहुंच मार्ग कीचड़ में डूबा हुआ है। बताया जा रहा है कि मौजूदा पंचायत की सरपंच प्रतिमा वर्मा की लापरवाही का खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। बरसात से पूर्व मुरूम के बजाय पीली मिट्टी से रास्ते को दुरूस्त करने की एक नासमझी की गई। फलस्वरूप इस रास्ते में दोपहिया वाहन तो दूर पैदल गुजरना भी दूभर हो गया है। बताया जा रहा है कि लगभग आधा दर्जन गांव की आबादी इस रास्ते से आवाजाही करती है। दल्लीखोली, कटेमा, टोला, बोड़ला, महुआढ़ार व अन्य कुछ गांव के लिए यह प्रमुख रास्ता है। यह इलाका घनघोर जंगल से घिरा हुआ है। बरसात के दौरान विषैले कीट-मकोड़ों और सर्पदंश का खतरा भी रहता है। वहीं आपाताकालीन चिकित्सकीय परिस्थिति में ग्रामीण इस रास्ते से खैरागढ़ का रूख करते हैं। मार्ग की खस्ता हालत के चलते ग्रामीणों में सरपंच के अलावा प्रशासन और कांग्रेस-भाजपा के जनप्रतिनिधियों के प्रति रोष व्याप्त है। लछना पंचायत के पूर्व सरपंच गणेशराम पटेल के अलावा देवीप्रसाद, सुखराम, भागवत नेताम, कुंवर सिंह, श्यामलाल समेत अन्य गांव के ग्रामीणों ने मौजूदा स्थिति को लेकर कड़ी नाराजगी जाहिर की है। बताया जा रहा है कि ग्रामीण कच्चे मार्ग को लेकर कई बार डामरयुक्त सडक़ बनाने की मांग करते रहे हैं। इस रास्ते से न सिर्फ प्रशासन के बल्कि नक्सल क्षेत्र के बेस कैम्प में तैनात अफसर और जवान भी गुजरते हैं। कटेमा और महुआढ़ार में संचालित बेस कैम्प का मुआयना और व्यवस्था की जांच पड़ताल के लिए अक्सर इस रोड से आलाधिकारियों को गुजरना पड़ता है। ऐसे में इस मुख्य कच्चे मार्ग से ग्रामीणों के अलावा प्रशासनिक अधिकारी भी सामान्य आवाजाही के लिए तरस रहे हैं।