मूल अधिकार का हनन रोकने के लिए समाज उठाएगा हथियार- मराबी

छत्तीसगढ़ संवाददाता अंबिकापुर, 30 अगस्त। सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष डॉ. अमृत सिंह मराबी ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कि सरगुजा की पहचान जंगलों से है, इसका लगातार सफाया राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को कोल ब्लॉक आबंटित करके किया जा रहा है। वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों के हितों का लगातार हनन हो रहा है। वनों का सफाया करने के लिए ग्रामीण महिला-पुरूषों के साथ बच्चों को कैदी की भांति विभिन्न थानों में लाकर रखा गया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री ही नहीं महामहिम जैसे पद पर आदिवासी वर्ग का प्रभुत्व होने के बाद भी आदिवासियों के साथ अत्याचार हो रहा है। ऐसे में प्रतीत होता है कि प्रदेश में आदिवासी मुखिया के बन जाने मात्र से आदिवासियों का हित नहीं हो सकता है। उन्होंने आगे कहा कि वे उदयपुर के परसा ईस्ट एवं केते बासेन कोल परियोजना अंतर्गत फेस-2 में की जा रही वनों की कटाई के परिप्रेक्ष्य में वन विभाग के डीएफओ से आदेश की मांग उनके द्वारा की गई, लेकिन उन्हें फुर्सत नहीं है। केते बासेन, घाटबर्रा सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के महिला-पुरूष और बच्चों को गाडिय़ों में ठूंसकर तारा, कोरबा, मैनपाट, सीतापुर, उदयपुर, लखनपुर, दरिमा सहित अन्य थाना में ले जाया गया। जब सरगुजा पुलिस अधीक्षक योगेश पटेल से उन्होंने पूछा कि किस अपराध में इन्हें थाना में बैठाया गया है, तो उन्होंने कहा कोई अपराध नहीं किया है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब इन्होंने कोई अपराध नहीं किया है, तो इन्हें विभिन्न थानों में भूखे-प्यासे क्यों और किसके इशारे पर बैठाकर रखा गया है। ऐसे में कलेक्टर, एसपी, डीएफओ जो प्रशासन तंत्र के अहम अंग हैं, इनसे उम्मीद खत्म होने के बाद एक ही रास्ता शेष रह जाता है, अपने मूल अधिकार का हनन रोकने के लिए समाज हथियार उठाएगी। डॉ. मराबी ने कहा कि आदिवासी समाज अपने ही जंगल-जमीन से जुड़ी जैव विविधता को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और जिम्मेदार उनके हित में काम करने के बजाए, उन पर जुल्म ढाने में लगे हैं। पत्रकारों से चर्चा के दौरान सर्व आदिवासी समाज के अनुक प्रताप सिंह टेकाम, राम प्रकाश पोर्ते, तरुण भगत, कुंजबिहारी पैकरा, लखन मराबी, रघुवर सिंह सहित अन्य उपस्थित थे।

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छत्तीसगढ़ संवाददाता अंबिकापुर, 30 अगस्त। सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष डॉ. अमृत सिंह मराबी ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कि सरगुजा की पहचान जंगलों से है, इसका लगातार सफाया राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को कोल ब्लॉक आबंटित करके किया जा रहा है। वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों के हितों का लगातार हनन हो रहा है। वनों का सफाया करने के लिए ग्रामीण महिला-पुरूषों के साथ बच्चों को कैदी की भांति विभिन्न थानों में लाकर रखा गया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री ही नहीं महामहिम जैसे पद पर आदिवासी वर्ग का प्रभुत्व होने के बाद भी आदिवासियों के साथ अत्याचार हो रहा है। ऐसे में प्रतीत होता है कि प्रदेश में आदिवासी मुखिया के बन जाने मात्र से आदिवासियों का हित नहीं हो सकता है। उन्होंने आगे कहा कि वे उदयपुर के परसा ईस्ट एवं केते बासेन कोल परियोजना अंतर्गत फेस-2 में की जा रही वनों की कटाई के परिप्रेक्ष्य में वन विभाग के डीएफओ से आदेश की मांग उनके द्वारा की गई, लेकिन उन्हें फुर्सत नहीं है। केते बासेन, घाटबर्रा सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के महिला-पुरूष और बच्चों को गाडिय़ों में ठूंसकर तारा, कोरबा, मैनपाट, सीतापुर, उदयपुर, लखनपुर, दरिमा सहित अन्य थाना में ले जाया गया। जब सरगुजा पुलिस अधीक्षक योगेश पटेल से उन्होंने पूछा कि किस अपराध में इन्हें थाना में बैठाया गया है, तो उन्होंने कहा कोई अपराध नहीं किया है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब इन्होंने कोई अपराध नहीं किया है, तो इन्हें विभिन्न थानों में भूखे-प्यासे क्यों और किसके इशारे पर बैठाकर रखा गया है। ऐसे में कलेक्टर, एसपी, डीएफओ जो प्रशासन तंत्र के अहम अंग हैं, इनसे उम्मीद खत्म होने के बाद एक ही रास्ता शेष रह जाता है, अपने मूल अधिकार का हनन रोकने के लिए समाज हथियार उठाएगी। डॉ. मराबी ने कहा कि आदिवासी समाज अपने ही जंगल-जमीन से जुड़ी जैव विविधता को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और जिम्मेदार उनके हित में काम करने के बजाए, उन पर जुल्म ढाने में लगे हैं। पत्रकारों से चर्चा के दौरान सर्व आदिवासी समाज के अनुक प्रताप सिंह टेकाम, राम प्रकाश पोर्ते, तरुण भगत, कुंजबिहारी पैकरा, लखन मराबी, रघुवर सिंह सहित अन्य उपस्थित थे।