श्रेय लेने की होड़ में मत रहो,मैं-मैं नहीं करना चाहिए:सागर में पं. इंद्रेश उपाध्याय बोले- जो कर रहे हैं ठाकुरजी कर रहे हैं
श्रेय लेने की होड़ में मत रहो,मैं-मैं नहीं करना चाहिए:सागर में पं. इंद्रेश उपाध्याय बोले- जो कर रहे हैं ठाकुरजी कर रहे हैं
हम सोचते हैं कि किसी भी आयोजन का भार हमारे ऊपर है जबकि, जो हो रहा सब ठाकुर जी संभाले हुए हैं। लेकिन, उनकी धारणा श्रेय लेने की नहीं है। वह तो कहते हैं कछु माखन को बल बढ़ों कछु गोपन करी सहाय, राधा जी की कृपा से गोवर्धन लियो उठाय। लेकिन, ठाकुर जी कभी परीक्षा भी ले लेते हैं, इसलिए मैं-मैं नहीं करना चाहिए। यह बात कथा वाचक इंद्रेश महाराज ने बालाजी मंदिर परिसर में आयोजित श्रीमद भागवत कथा में कही। बुधवार को कथा का समापन होगा, कथा के बाद भंडारे का आयोजन किया जाएगा। बुधवार को कथा के दौरान उन्होंने कहा कि जब ठाकुरजी ने अपनी छोटी उंगली पर गिरीराज जी को धारण किया तो ग्वाल बाल सहित अन्य लोगों ने अपनी लाठियां लगा दीं और आश्वस्त हो गए कि उनकी लाठियों के बल पर पर्वत टिका हुआ है। वे कन्हैया से बोले कि अपनी उंगली हटा लो हमने साध लिया है। कन्हैया बोले- मैंने अंगूली हटाई तो नीचे गिर जाए पर्वत, ग्वाल बोले- अरे इतनी सी अंगूली से थोड़ी सधा हुआ है। यह जो हमने अपनी लाठियां लगाई हैं, वह कुछ नहीं हैं क्या ? हटा लो कन्हैया कुछ नहीं होगा। इतने कहना था कि जैसे ही कन्हैया ने नेक (जरा) अूंगली हटाई और लाठियां टूट गईं। अब गिरिराज जी को कन्हैया की अंगूली पर सधा देख सब जय कारे लगाने लगे, तब सबने पूछा कौन हो तुम? कन्हैया ने बोले जय-जय हूं मैं। मैंने पूतना, वकासुर सहित दर्जनों राक्षसों का वध किया। कालिया के ऊपर नृत्य किया और अब गोवर्धन उठा लिया, फिर भी तुम लोगों को संशय है। ठाकुरजी भक्तों के लिए ईंट पर खड़े विट्ठल भी हैं पंडित इंद्रेश उपाध्याय ने कहा कि सागर में उन्होंने श्री विट्ठल मंदिर और अष्ट सखी मंदिर के दर्शन किए थे। उन्होंने विट्ठल भगवान का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि पुंडलिक नाम के एक वैष्णव अपने माता-पिता की सेवा करते रहते थे। उनकी सेवा भाव से भगवान प्रसन्न हो गए और पुंडलिक के घर पहुंच गए। भगवान कृष्ण और रुक्मिणी को देख पुंडलिक बोले प्रतीक्षा करो अभी में अपने माता-पिता कि सेवा कर रहा हूं। भगवान खड़े हो गए, तब उनके माता-पिता ने कहा उन्हें आसन तो दो। इस पर जल्दबाजी में पुंडलिक ने एक ईंट दे दी। भगवान उसी पर खड़े हो गए। मराठी में ईंट को वीट कहते हैं। तब भक्त की प्रतीक्षा में वीट पर ठाड़े (खड़े) भगवान विट्ठल हो गए।
हम सोचते हैं कि किसी भी आयोजन का भार हमारे ऊपर है जबकि, जो हो रहा सब ठाकुर जी संभाले हुए हैं। लेकिन, उनकी धारणा श्रेय लेने की नहीं है। वह तो कहते हैं कछु माखन को बल बढ़ों कछु गोपन करी सहाय, राधा जी की कृपा से गोवर्धन लियो उठाय। लेकिन, ठाकुर जी कभी परीक्षा भी ले लेते हैं, इसलिए मैं-मैं नहीं करना चाहिए। यह बात कथा वाचक इंद्रेश महाराज ने बालाजी मंदिर परिसर में आयोजित श्रीमद भागवत कथा में कही। बुधवार को कथा का समापन होगा, कथा के बाद भंडारे का आयोजन किया जाएगा। बुधवार को कथा के दौरान उन्होंने कहा कि जब ठाकुरजी ने अपनी छोटी उंगली पर गिरीराज जी को धारण किया तो ग्वाल बाल सहित अन्य लोगों ने अपनी लाठियां लगा दीं और आश्वस्त हो गए कि उनकी लाठियों के बल पर पर्वत टिका हुआ है। वे कन्हैया से बोले कि अपनी उंगली हटा लो हमने साध लिया है। कन्हैया बोले- मैंने अंगूली हटाई तो नीचे गिर जाए पर्वत, ग्वाल बोले- अरे इतनी सी अंगूली से थोड़ी सधा हुआ है। यह जो हमने अपनी लाठियां लगाई हैं, वह कुछ नहीं हैं क्या ? हटा लो कन्हैया कुछ नहीं होगा। इतने कहना था कि जैसे ही कन्हैया ने नेक (जरा) अूंगली हटाई और लाठियां टूट गईं। अब गिरिराज जी को कन्हैया की अंगूली पर सधा देख सब जय कारे लगाने लगे, तब सबने पूछा कौन हो तुम? कन्हैया ने बोले जय-जय हूं मैं। मैंने पूतना, वकासुर सहित दर्जनों राक्षसों का वध किया। कालिया के ऊपर नृत्य किया और अब गोवर्धन उठा लिया, फिर भी तुम लोगों को संशय है। ठाकुरजी भक्तों के लिए ईंट पर खड़े विट्ठल भी हैं पंडित इंद्रेश उपाध्याय ने कहा कि सागर में उन्होंने श्री विट्ठल मंदिर और अष्ट सखी मंदिर के दर्शन किए थे। उन्होंने विट्ठल भगवान का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि पुंडलिक नाम के एक वैष्णव अपने माता-पिता की सेवा करते रहते थे। उनकी सेवा भाव से भगवान प्रसन्न हो गए और पुंडलिक के घर पहुंच गए। भगवान कृष्ण और रुक्मिणी को देख पुंडलिक बोले प्रतीक्षा करो अभी में अपने माता-पिता कि सेवा कर रहा हूं। भगवान खड़े हो गए, तब उनके माता-पिता ने कहा उन्हें आसन तो दो। इस पर जल्दबाजी में पुंडलिक ने एक ईंट दे दी। भगवान उसी पर खड़े हो गए। मराठी में ईंट को वीट कहते हैं। तब भक्त की प्रतीक्षा में वीट पर ठाड़े (खड़े) भगवान विट्ठल हो गए।