यूक्रेन शांति वार्ता में चीन ईयू को क्यों जोड़ना चाहता है

अमेरिका जहां रूस के साथ सीधे बातचीत करने की कोशिश कर रहा है, वहीं चीन चाहता है कि यूरोपीय संघ भी इस बातचीत का हिस्सा बने डॉयचे वैले पर डांग युआन की रिपोर्ट- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन ने यूक्रेन को लेकर शांति वार्ता पर कहा, चीन शांति की खातिर किए गए सभी प्रयासों का स्वागत करता है, अमेरिका और रूस के बीच हाल ही में हुई शांति वार्ता भी इसमें शामिल है. संयुक्त राष्ट्र में यह बयान चीन के राजदूत फू कांग ने एक प्रेस वार्ता में दिया. उन्होंने आगे कहा, चीन उम्मीद करता है कि यूक्रेन के मुद्दे से जुड़े सभी पक्ष और हितधारक शांति वार्ता की प्रक्रिया में शामिल होंगे. यूरोप का शांति के लिए कदम उठाना आवश्यक है क्योंकि यह टकराव यूरोप की भूमि पर हो रहा है. उनका यह बयान इस मुद्दे पर रूस की स्थिति से काफी अलग नजर आता है, जबकि रूस चीन का सबसे अहम रणनीतिक साझेदार माना जाता है. इससे एक दिन पहले सऊदी अरब में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से मिलने से ठीक पहले रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि वह शांति वार्ता में यूरोपीय संघ के लिए कोई जगह नहीं देखते क्यूंकि उनको पहले ही कई बार यह मुद्दा सुलझाने की बातचीत में हिस्सा लेने के मौके मिले हैं. क्या यूरोप के बिना हो सकती है यूरोप में शांति की बात? फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तब से ही चीन रूस का समर्थन करता आ रहा है. उसने रूस के हमले की निंदा करने से लगातार इंकार किया है और अमेरिका सहित कई देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद भी रूस की आर्थिक रूप से मदद की है. युद्ध के दौरान चीन लगातार कहता रहा है कि यह विवाद बातचीत के जरिए सुलझाया जाना चाहिए. बीजिंग के राजनीतिक विश्लेषक कान क्वानक्यू का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन का बयान रूस से उलट नजर आया क्योंकि इस मुद्दे पर रूस यूरोप को बांटने के मौके की तरह देख रहा है. कान का मानना है, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कहना है कि यूक्रेन की सैन्य शक्ति खत्म कर देनी चाहिए. इस शर्त के साथ यूरोप का शांति वार्ता में शामिल होना और भी कठिन हो जाता है. उन्होंने आगे कहा कि इस तरह से रूस वाशिंगटन के साथ जल्दी समझौता कर लेगा और इस तरह से राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका समझौता करके यूरोप और यूक्रेन को धोखा देगा. ऐसा कोई भी समझौता यूरोप में कोल्ड वॉर के बाद से बने अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र को हिला सकता है. पिछले हफ्ते म्यूनिख में हुए सुरक्षा सम्मेलन में यह साफ हो गया कि यूरोप की नई विदेश नीतियां चुनौतियों का सामना करना कर रही है. सम्मेलन के मुख्य अतिथि, नए अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वांस ने यह साफ नहीं किया कि अमेरिका यूरोप में शांति बहाल करने के लिए क्या कदम उठाएगा. इसके बजाय, उन्होंने अपने भाषण में वहां मौजूद यूरोपीय अधिकारियों पर आरोप लगाया कि यूरोप की सरकारें दक्षिणपंथी पार्टियों को अलग-थलग करने की कोशिश कर रही हैं और वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचा रही हैं. यूरोप से मुंह मोड़ता दिख रहा है अमेरिका अपने चुनावी अभियान के दौरान डॉनल्ड ट्रंप ने कई बार कहा था कि वे सत्ता में लौटते ही 24 घंटे के अंदर यूक्रेन युद्ध खत्म कर देंगे.लेकिन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना कर रहे रूस से सीधा संबंध बनाना और उसमें यूरोप और यूक्रेन को शामिल ना करना, यह संकेत देता है कि अमेरिका अपने पुराने गठबंधनों से पीछे हट रहा है. जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स के विशेषज्ञ साशा लोहमान और योहानेस थिम ने डीडब्ल्यू से कहा कि यूरोप को अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है. उनका मानना है कि अगर अमेरिका अब प्राकृतिक सहयोगी की बजाय ऐसा देश बन गया है जो यूरोप के खिलाफ है, तो यूरोप और जर्मनी को अपना हित खुद तय करना होगा. वे कहते हैं कि यूरोप को ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे वह खुद अपने भविष्य को आकार दे सके और किसी भी अमेरिकी दबाव का सामना कर सके. यूरोप की ओर चीन ने बढ़ाया हाथ इस समय चीन यूरोपीय संघ की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाता दिख रहा है. म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में अमेरिका के उप-राष्ट्रपति के भाषण के बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने अमेरिका के विपरीत चीन को एक सहयोगी के रूप में पेश किया. वांग यी ने कहा कि चीन अकेले संयुक्त राष्ट्र की कुल फंडिंग का 20 फीसदी देता है, वह पूरी तरह पेरिस जलवायु समझौते का पालन करता है और अपनी सहूलियत के हिसाब से नियम नहीं बनाता. उन्होंने कहा, आज की वैश्विक चुनौतियों के बीच कोई भी देश अलग नहीं रह सकता. अगर हर देश पहले हम की नीति अपनाएगा, तो यह सबके लिए नुकसानदायक होगा. उन्होंने आगे कहा कि चीन बहुपक्षीय सहयोग का समर्थन करता है, और वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलकर काम करने में विश्वास रखता है. पिछले साल, यूरोपीय संघ ने चीन को लेकर एक नई नीति बनाई थी, जिसमें उसे साझेदार, प्रतिस्पर्धी और प्रतिद्वंद्वी बताया गया था. इस नीति में चीन से कुछ हद तक दूरी बनाने की बात कही गई थी. म्यूनिख में अपने भाषण के दौरान वांग ने इस पर प्रतिक्रिया दी. वांग यी ने कहा कि चीन हमेशा से यूरोप को एक अहम हिस्सा मानता है. हम एक-दूसरे के साझेदार हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं. उन्होंने अपने भाषण का अंत इस अपील के साथ किया कि चीन और यूरोप को रणनीतिक संवाद बढ़ाना चाहिए, आपसी सहयोग को मजबूत करना चाहिए, और दुनिया को शांति, सुरक्षा, समृद्धि और प्रगति के उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाना चाहिए. क्या विरोधाभासी बातें कर रहा है चीन? रेगन्सबुर्ग यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विश्लेषक श्टेफान बियरलिंग ने डीडब्ल्यू से कहा कि वांग यी के बयान दोमुंहे है. चीन बहुपक्षीय सहयोग की बात तो करता है लेकिन असल में वह सिर्फ अपने प्रभाव क्षेत्र को मजबूत करना चाहता है. उन्होंने कहा कि चीन खुद को नियमित विश्व व्यवस्था का समर्थक बताता है लेकिन सबसे ज्यादा खुद इस व्यवस्था का उल्लंघन करता है. बियरलिंग ने आगे क

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अमेरिका जहां रूस के साथ सीधे बातचीत करने की कोशिश कर रहा है, वहीं चीन चाहता है कि यूरोपीय संघ भी इस बातचीत का हिस्सा बने डॉयचे वैले पर डांग युआन की रिपोर्ट- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन ने यूक्रेन को लेकर शांति वार्ता पर कहा, चीन शांति की खातिर किए गए सभी प्रयासों का स्वागत करता है, अमेरिका और रूस के बीच हाल ही में हुई शांति वार्ता भी इसमें शामिल है. संयुक्त राष्ट्र में यह बयान चीन के राजदूत फू कांग ने एक प्रेस वार्ता में दिया. उन्होंने आगे कहा, चीन उम्मीद करता है कि यूक्रेन के मुद्दे से जुड़े सभी पक्ष और हितधारक शांति वार्ता की प्रक्रिया में शामिल होंगे. यूरोप का शांति के लिए कदम उठाना आवश्यक है क्योंकि यह टकराव यूरोप की भूमि पर हो रहा है. उनका यह बयान इस मुद्दे पर रूस की स्थिति से काफी अलग नजर आता है, जबकि रूस चीन का सबसे अहम रणनीतिक साझेदार माना जाता है. इससे एक दिन पहले सऊदी अरब में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से मिलने से ठीक पहले रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि वह शांति वार्ता में यूरोपीय संघ के लिए कोई जगह नहीं देखते क्यूंकि उनको पहले ही कई बार यह मुद्दा सुलझाने की बातचीत में हिस्सा लेने के मौके मिले हैं. क्या यूरोप के बिना हो सकती है यूरोप में शांति की बात? फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तब से ही चीन रूस का समर्थन करता आ रहा है. उसने रूस के हमले की निंदा करने से लगातार इंकार किया है और अमेरिका सहित कई देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद भी रूस की आर्थिक रूप से मदद की है. युद्ध के दौरान चीन लगातार कहता रहा है कि यह विवाद बातचीत के जरिए सुलझाया जाना चाहिए. बीजिंग के राजनीतिक विश्लेषक कान क्वानक्यू का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन का बयान रूस से उलट नजर आया क्योंकि इस मुद्दे पर रूस यूरोप को बांटने के मौके की तरह देख रहा है. कान का मानना है, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कहना है कि यूक्रेन की सैन्य शक्ति खत्म कर देनी चाहिए. इस शर्त के साथ यूरोप का शांति वार्ता में शामिल होना और भी कठिन हो जाता है. उन्होंने आगे कहा कि इस तरह से रूस वाशिंगटन के साथ जल्दी समझौता कर लेगा और इस तरह से राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका समझौता करके यूरोप और यूक्रेन को धोखा देगा. ऐसा कोई भी समझौता यूरोप में कोल्ड वॉर के बाद से बने अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र को हिला सकता है. पिछले हफ्ते म्यूनिख में हुए सुरक्षा सम्मेलन में यह साफ हो गया कि यूरोप की नई विदेश नीतियां चुनौतियों का सामना करना कर रही है. सम्मेलन के मुख्य अतिथि, नए अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वांस ने यह साफ नहीं किया कि अमेरिका यूरोप में शांति बहाल करने के लिए क्या कदम उठाएगा. इसके बजाय, उन्होंने अपने भाषण में वहां मौजूद यूरोपीय अधिकारियों पर आरोप लगाया कि यूरोप की सरकारें दक्षिणपंथी पार्टियों को अलग-थलग करने की कोशिश कर रही हैं और वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचा रही हैं. यूरोप से मुंह मोड़ता दिख रहा है अमेरिका अपने चुनावी अभियान के दौरान डॉनल्ड ट्रंप ने कई बार कहा था कि वे सत्ता में लौटते ही 24 घंटे के अंदर यूक्रेन युद्ध खत्म कर देंगे.लेकिन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना कर रहे रूस से सीधा संबंध बनाना और उसमें यूरोप और यूक्रेन को शामिल ना करना, यह संकेत देता है कि अमेरिका अपने पुराने गठबंधनों से पीछे हट रहा है. जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स के विशेषज्ञ साशा लोहमान और योहानेस थिम ने डीडब्ल्यू से कहा कि यूरोप को अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है. उनका मानना है कि अगर अमेरिका अब प्राकृतिक सहयोगी की बजाय ऐसा देश बन गया है जो यूरोप के खिलाफ है, तो यूरोप और जर्मनी को अपना हित खुद तय करना होगा. वे कहते हैं कि यूरोप को ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे वह खुद अपने भविष्य को आकार दे सके और किसी भी अमेरिकी दबाव का सामना कर सके. यूरोप की ओर चीन ने बढ़ाया हाथ इस समय चीन यूरोपीय संघ की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाता दिख रहा है. म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में अमेरिका के उप-राष्ट्रपति के भाषण के बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने अमेरिका के विपरीत चीन को एक सहयोगी के रूप में पेश किया. वांग यी ने कहा कि चीन अकेले संयुक्त राष्ट्र की कुल फंडिंग का 20 फीसदी देता है, वह पूरी तरह पेरिस जलवायु समझौते का पालन करता है और अपनी सहूलियत के हिसाब से नियम नहीं बनाता. उन्होंने कहा, आज की वैश्विक चुनौतियों के बीच कोई भी देश अलग नहीं रह सकता. अगर हर देश पहले हम की नीति अपनाएगा, तो यह सबके लिए नुकसानदायक होगा. उन्होंने आगे कहा कि चीन बहुपक्षीय सहयोग का समर्थन करता है, और वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलकर काम करने में विश्वास रखता है. पिछले साल, यूरोपीय संघ ने चीन को लेकर एक नई नीति बनाई थी, जिसमें उसे साझेदार, प्रतिस्पर्धी और प्रतिद्वंद्वी बताया गया था. इस नीति में चीन से कुछ हद तक दूरी बनाने की बात कही गई थी. म्यूनिख में अपने भाषण के दौरान वांग ने इस पर प्रतिक्रिया दी. वांग यी ने कहा कि चीन हमेशा से यूरोप को एक अहम हिस्सा मानता है. हम एक-दूसरे के साझेदार हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं. उन्होंने अपने भाषण का अंत इस अपील के साथ किया कि चीन और यूरोप को रणनीतिक संवाद बढ़ाना चाहिए, आपसी सहयोग को मजबूत करना चाहिए, और दुनिया को शांति, सुरक्षा, समृद्धि और प्रगति के उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जाना चाहिए. क्या विरोधाभासी बातें कर रहा है चीन? रेगन्सबुर्ग यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विश्लेषक श्टेफान बियरलिंग ने डीडब्ल्यू से कहा कि वांग यी के बयान दोमुंहे है. चीन बहुपक्षीय सहयोग की बात तो करता है लेकिन असल में वह सिर्फ अपने प्रभाव क्षेत्र को मजबूत करना चाहता है. उन्होंने कहा कि चीन खुद को नियमित विश्व व्यवस्था का समर्थक बताता है लेकिन सबसे ज्यादा खुद इस व्यवस्था का उल्लंघन करता है. बियरलिंग ने आगे कहा, शायद इस बार वांग का बयान थोड़ा ज्यादा असर कर दे, क्योंकि अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वांस ने अमेरिकी विदेश नीति पर कुछ भी नहीं कहा. उन्हें लगता है कि यूरोपीय देश अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बड़े मुद्दों पर सही ढंग से बात करने के लायक भी नहीं है. फूट डालो और राज करो? जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स में ही एशिया मामलों की विशेषज्ञ आंगेला श्टांजेल का मानना है कि चीन पश्चिमी दुनिया के लोकतांत्रिक देशों को बांटने की कोशिश करेगा. अपने सह-लेखक जोनाथन मिशेल के साथ एक स्टडी में उन्होंने लिखा है, अगर ट्रंप प्रशासन यूक्रेन के लिए अपना समर्थन बहुत कम कर देता है, तो इससे अमेरिका और यूरोप के बीच दूरियां बढ़ सकती है. ऐसे में, बीजिंग इसे तुरंत एक मौका मानकर यूरोपीय देशों को रणनीतिक स्वतंत्रता की ओर धकेलने की कोशिश करेगा. श्टांजेल ने आगे कहा, चीन की लक्ष्य यह होगा कि यूरोप-अमेरिका से दूरी बना ले और चीन के साथ अपने रिश्ते बेहतर करे. इस स्टडी में सलाह दी गई है कि यूरोपीय संघ के प्रमुख सदस्य देशों जर्मनी और फ्रांस को यूरोपीय संघ की भू-राजनीतिक पहुंच को मजबूत करना चाहिए. लेखकों का मानना है कि इससे चीन से आने वाले खतरों को कम किया जा सकता है, जबकि अमेरिका के साथ गहरे संवाद को बनाए रखा जा सकता है. बीजिंग स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर चाइना एंड ग्लोबलाइजेशन के संस्थापक और अर्थशास्त्री वांग हुईयाओ ने कहा, डॉनल्ड ट्रंप को समझौते करना पसंद है, और उन्होंने कई असंभव चीजों को संभव बनाया है. वे मानते हैं कि यूरोपीय संघ ट्रंप के साथ व्यापार कर सकता है, जैसा कि रूस और चीन भी कर सकते है. ट्रंप विचारधारा, साझा मूल्यों और मानवाधिकार जैसे कठिन मुद्दों से बचते हैं. वांग भविष्य की वैश्विक व्यवस्था में एक शक्ति त्रिकोण की कल्पना करते हैं, जिसमें अमेरिका, यूरोप और चीन शामिल होंगे. उन्होंने कहा, यूरोप चीन और अमेरिका के बीच संतुलन बना सकता है. चीन को ट्रांसअटलांटिक संबंधों में नए मौके मिल रहे है. इसमें बड़ी संभावनाएं हैं, लेकिन बड़े जोखिम भी हैं. (dw.com/hi)