आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए बड़ी मांग:निगम-मंडलों से कंपनियों को हटाने की मांग, वेतन का भुगतान सीधे करने का प्रस्ताव

निगम, मंडल, बोर्ड, परिषदों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों के हित में एक महत्वपूर्ण पहल की गई है। आउटसोर्स कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष अनिल वाजपेई ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कर्मचारियों के वेतन का भुगतान सीधे उनके बैंक खातों में करने की मांग की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि मांगें नहीं मानी गईं तो सेडमैप कार्यालय के समक्ष धरना प्रदर्शन किया जाएगा वाजपेई ने आरोप लगाया कि वर्तमान में मैन पावर सप्लाई करने वाली कंपनियां निगम, मंडलों से लगभग 50 करोड़ रुपए कमीशन के रूप में वसूल रही हैं। इन कंपनियों द्वारा न तो कर्मचारियों का पीएफ समय पर जमा किया जाता है और न ही श्रम विभाग के आदेशों का पालन किया जाता है। पत्र में बताया गया है कि सेडमैप द्वारा निगमों से ठेका लेने के बाद मनचाही कंपनियों को कर्मचारियों की सेवाएं सौंप दी जाती हैं। श्रम अधिनियम 1933 के अनुसार, जिस कंपनी को मैन पावर सप्लाई का ठेका मिलता है, उसी को काम करना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। वाजपेई के अनुसार, यदि कर्मचारियों को उनके बैंक खातों में सीधे भुगतान किया जाए तो निगम-मंडलों को प्रतिवर्ष 50 करोड़ रुपए की बचत हो सकती है। साथ ही श्रम कानूनों का बेहतर क्रियान्वयन भी होगा। ।

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निगम, मंडल, बोर्ड, परिषदों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों के हित में एक महत्वपूर्ण पहल की गई है। आउटसोर्स कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष अनिल वाजपेई ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कर्मचारियों के वेतन का भुगतान सीधे उनके बैंक खातों में करने की मांग की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि मांगें नहीं मानी गईं तो सेडमैप कार्यालय के समक्ष धरना प्रदर्शन किया जाएगा वाजपेई ने आरोप लगाया कि वर्तमान में मैन पावर सप्लाई करने वाली कंपनियां निगम, मंडलों से लगभग 50 करोड़ रुपए कमीशन के रूप में वसूल रही हैं। इन कंपनियों द्वारा न तो कर्मचारियों का पीएफ समय पर जमा किया जाता है और न ही श्रम विभाग के आदेशों का पालन किया जाता है। पत्र में बताया गया है कि सेडमैप द्वारा निगमों से ठेका लेने के बाद मनचाही कंपनियों को कर्मचारियों की सेवाएं सौंप दी जाती हैं। श्रम अधिनियम 1933 के अनुसार, जिस कंपनी को मैन पावर सप्लाई का ठेका मिलता है, उसी को काम करना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। वाजपेई के अनुसार, यदि कर्मचारियों को उनके बैंक खातों में सीधे भुगतान किया जाए तो निगम-मंडलों को प्रतिवर्ष 50 करोड़ रुपए की बचत हो सकती है। साथ ही श्रम कानूनों का बेहतर क्रियान्वयन भी होगा। ।