50 गांव के एक हजार किसान कर रहे हल्दी खेती:बुरहानपुर में जैविक खेती के प्रति आकर्षित हो रहे किसान; केला और गन्ना की फसल से किया किनारा

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50 गांव के एक हजार किसान कर रहे हल्दी खेती:बुरहानपुर में जैविक खेती के प्रति आकर्षित हो रहे किसान; केला और गन्ना की फसल से किया किनारा
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बुरहानपुर जिले के किसान अब तक केला और गन्ना फसल ही लगाते थे, लेकिन पिछले 5 सालों से नेपानगर सहित आसपास के क्षेत्रों में किसानों ने हल्दी की जैविक खेती को तरजीह देना शुरू कर दिया है। आलम यह है कि पहले 1-2 गांव में ही हल्दी की खेती होती थी, लेकिन अब 50 से अधिक गांवों में 1 हजार से ज्यादा किसान हल्दी की खेती कर रहे हैं। खास बात यह है कि जिले में हो रही हल्दी की पैदावार की सभी तारीफ कर रहे हैं। यहां की क्वालिटी भी काफी बेहतर आ रही है। कई बार महाराष्ट्र से भी किसान हल्दी की खेती देखने नेपानगर क्षेत्र के ग्राम अंबाड़ा, सारोला, गुलाई, निमंदड़, शाहपुर, इच्छापुर, संग्रामपुर, सारोला सहित अन्य गांवों में आ चुके हैं। यहां की तकनीक बताने स्थानीय किसान कई बार महाराष्ट्र भी गए हैं। वर्तमान में जिले के ग्राम अंबाड़ा, सारोला, उमरदा, बोदरली, फोफनार, डोंगरगांव, बड़झिरी, टिटगांव, दर्यापुर सहित 50 से अधिक गांव के किसानों ने ढाई हजार हेक्टेयर में हल्दी की फसल लगाई है। किसानों के अनुसार 2-3 साल में पूरे प्रदेश में हल्दी की खेती के प्रति किसानों का रूझान बढ़ा है। हल्दी की सबसे ज्यादा खेती आंध्र प्रदेश में होती है। इसके अलावा उड़ीसा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मेघालय, असम में इसकी खेती की जाती है। साथ ही अब बुरहानपुर जिले में भी हल्दी की खेती की जा रही है। हल्दी की खेती कम लागत और अधिक मुनाफा वाली खेती है। खास बात यह है कि इसमें मेहनत भी कम लगती है। मौसम से भी फसल को कोई नुकसान नहीं होता। इसमें न तो रोग लगता है, न ही मौसम का डर निमंदड़ के किसान उज्ज्वल चौधरी ने बताया हल्दी में बाकी फसलों की तरह नुकसान का खतरा नहीं होता। इसमें न तो रोग लगता है और न ही मौसम का डर होता है। हल्दी की फसल में एक खूबी यह भी है कि इसे आंधी, तूफान और जानवरों से कोई नुकसान नहीं होता। साधारण बारिश फसल को खराब नहीं करती। हालांकि अधिक बारिश के कारण फसल में फंगस जरूर लग जाती है। चौधरी ने बताया वे फसल में किसी भी तरह के केमिकल का उपयोग नहीं करते हैं। वे केवल ऑर्गेनिक खाद का ही उपयोग करते हैं। महाराष्ट्र में प्रेजेंटेशन देकर आ चुके क्षेत्र के किसान क्षेत्र में हो रही हल्दी की पैदावार की क्वालिटी वर्तमान में अन्य कुछ प्रदेशों की तुलना में काफी अच्छी आ रही है। इसके बाद आसपास के किसान भी इसे देखने यहां आ चुके हैं। सारोला, अंबाड़ा के किसान भी महाराष्ट्र में प्रेजेंटेशन देकर आए हैं। धीरे-धीरे जिले में हो रही हल्दी की पैदावार और उसकी बेहतर क्वालिटी की तारीफ हो रही है। अंबाड़ा, सारोला, फोफनार क्षेत्र में ही 100 से अधिक किसान हल्दी की फसल लगा रहे हैं। जबकि यहां पहले गन्ना, केला के अलावा दूसरी फसल नहीं लगती थी। हल्दी की फसल 9 महीने में पककर तैयार होती है। इससे किसान हर साल डेढ़ से दो लाख रुपए तक का मुनाफा भी कमा रहे हैं।